मंज की रस्सी में पाया दादी का प्यार अनन्त असीम शांति और दुलार । दुपट्टे में छिपाया अपने संग सुलाया । आज बरसों बाद मुझ को लगा ……
इस रस्सी के बीनें धागे बचपन याद दिलाते हैं दादी सी झिडकी कोई दे दे
पड़ी अकेले पलसेटे लेती मटर निकाले, मैथी तोड़ी मंजी पर झसवाया सर उस ने तेल लगाया सर
दूध मलाई हमें खिलाई
बुआ अपनी साथ बिठाई ।
कहाँ गई वो बातें
कहाँ गई दराती
कहाँ गया वो साग
कहाँ गया वो मीठा राग
भाणढे कली कराने
कहाँ गये वो वेडे
कहाँ गये ब्राह्मणी का आना
आटे की रोटी गाय को खिलाना
मेरे बचपन का तूं तूं वाला मिट्टी के खिलौने
रेडी वाले का आना
ढोल में दूध लाना
तनदूर से जा भाग फुल्के लगवाना
वो दादी के आँचल में छुप कर यूँ सोना वो गलासी से दूध मलाई खाना वो काँगड़ी की तपन से मन को नहाना क्रोशिया के धागे वो बुआ की झिड़की वो छोलिये को चुगना, मैथी का तुड़ाना मेरी मँजीं से बस जुड़ा है ज़माना ।
मंजी क्या आई
बचपन की याद दिलाई मंजी के धागे
बचपन ले भागे ||
मधु खन्ना ।